बलिया में आल इंडिया लायर्स यूनियन ने राष्ट्रपति को संबोधित ज्ञापन जिलाधिकारी को सौंपा : नए कानूनों पर कही ये बात

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बलिया, 29 जून: आल इंडिया लायर्स यूनियन के सदस्यों ने शनिवार को राष्ट्रपति को संबोधित ज्ञापन जिलाधिकारी को सौंपा। यूनियन ने ज्ञापन के माध्यम से एक जुलाई 2024 से प्रस्तावित तीन नए आपराधिक कानूनों – भारतीय न्याय संहिता 2024, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2024, तथा भारतीय साक्ष्य अधिनियम 2024 पर व्यापक विचार-विमर्श की मांग की है।

जल्दबाजी में बनाए गए कानून

लायर्स यूनियन के मंत्री ने कहा कि ये कानून आनन-फानन में लाए गए हैं। उन्होंने बताया कि इन कानूनों पर जनप्रतिनिधियों से भी चर्चा नहीं की गई है। उन्होंने कहा कि पुराने सीआरपीसी को बनाने में 30-32 वर्ष लगे थे और इसे जनप्रतिनिधियों सहित अन्य से विचार-विमर्श करके तैयार किया गया था। उन्होंने मांग की कि इन नए कानूनों को पुनः संसद में लाकर विस्तृत विचार-विमर्श किया जाए ताकि ये अच्छे कानून बन सकें।

लोकतंत्र पर हमला

आल इंडिया लायर्स यूनियन के सदस्यों ने कहा कि तीनों कानूनों पर उनकी कुछ गंभीर आपत्तियां हैं। उन्होंने कहा कि तीनों विधेयकों का ड्राफ्ट जनता में जारी नहीं किया गया और ना ही सुझाव आमंत्रित किए गए। 97% प्रावधानों को यथावत रखा गया है और केवल धाराओं का क्रम बदला गया है, जैसे धारा 302, 420, और 376 का नया क्रम दिया गया है। उन्होंने इसे गलतफहमी और देश के संसाधनों पर वित्तीय भार बढ़ाने वाला बताया।

यूनियन ने कहा कि औपनिवेशिक और क्रूर कानून को यथावत रखते हुए इसे और भी प्रतिगामी बनाया गया है। उन्होंने कहा कि देशद्रोह के औपनिवेशिक कानून को वैसा ही रखा गया है और सरकार के विरोध को भी देशद्रोह के अपराध में शामिल कर दिया गया है। यह देश में लोकतंत्र पर हमला है और संविधान में विचार अभिव्यक्ति के मूल्यों के विरुद्ध है।

पुलिस हिरासत और अधिकारों पर चिंता

यूनियन ने आगे कहा कि पुलिस हिरासत तथा पुलिस के अधिकार बढ़ा दिए गए हैं, जो विधि के शासन, लोकतंत्र तथा दैहिक स्वतंत्रता के विरुद्ध है। ऐसी परिस्थिति में 1 जुलाई को होने वाले कानून क्रियान्वयन को रोकते हुए जनता तथा हितधारकों से व्यापक विचार-विमर्श आमंत्रित करना चाहिए।

यूनियन के इस ज्ञापन से यह स्पष्ट होता है कि प्रस्तावित कानूनों को लेकर गहरी चिंताएँ हैं और इन्हें लागू करने से पहले व्यापक चर्चा और विचार-विमर्श की आवश्यकता है। यूनियन ने जोर देकर कहा कि यह प्रक्रिया लोकतंत्र और जनता के हितों के लिए अनिवार्य है।

source- dainik bhaskar/social media

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