60 वर्ष से अधिक आयु के 982 रसोइयों की जीविका पर मंडराया संकट
बलिया, जिले में मध्याह्न भोजन (एमडीएम) संचालन के लिए कार्यरत 60 वर्ष से अधिक आयु के रसोइयों के मानदेय में आ रही बाधा ने उनकी आर्थिक स्थिति को संकट में डाल दिया है। वर्तमान में 982 रसोइयों का मार्च से अब तक का मानदेय जारी नहीं किया गया है, जबकि अन्य रसोइयों का अप्रैल तक का मानदेय उनके खातों में भेज दिया गया है। जिले में कुल 6480 रसोइये कार्यरत हैं, जिनमें से 982 रसोइयों की आयु 60 वर्ष या उससे अधिक है।
समस्या का कारण
मध्याह्न भोजन कार्यक्रम के जिला समन्वयक अजीत पाठक ने बताया कि 60 वर्ष से अधिक आयु के रसोइयों के मानदेय के भुगतान में देरी का कारण वित्त एवं लेखाधिकारी से मार्गदर्शन की आवश्यकता बताई गई है। वहीं, रसोइया संघ ने आरोप लगाया है कि ऐसा कोई शासनादेश नहीं है जिसके आधार पर रसोइयों का मानदेय रोका गया है। संघ के सदस्यों ने इस मुद्दे पर पिछले दिनों विरोध प्रदर्शन भी किया था।
रसोइया संघ की प्रतिक्रिया
रसोइया संघ की जिला अध्यक्ष रेनू शर्मा ने कहा कि सरकार ने यह स्पष्ट किया था कि केवल वे रसोइये, जो कार्य करने में असमर्थ हैं, उनकी सेवा समाप्त की जाएगी। उन्होंने यह भी कहा कि 60 वर्ष से अधिक आयु वाले सभी रसोइयों का मानदेय रोकना पूरी तरह गलत है। संघ ने 27 सितंबर को कार्य बहिष्कार कर धरना देने की घोषणा की है। उनकी मांगों में 60 वर्ष की आयु में छंटनी बंद करना, छात्र संख्या कम होने पर छंटनी पर रोक, बच्चों की बाध्यता समाप्त करना, और 2022 एवं 2023 के मानदेय का भुगतान शामिल हैं।
शिक्षामित्रों और अनुदेशकों का भी खतरा
60 वर्ष से अधिक आयु के शिक्षामित्रों और अनुदेशकों की सेवा पर भी संकट के बादल छा गए हैं। वित्त एवं लेखाधिकारी ने सभी खंड शिक्षा अधिकारियों से 60 वर्ष पार कर चुके शिक्षामित्रों और अनुदेशकों की जन्मतिथि और सेवा का ब्योरा मांगा है। इस कदम से उनकी सेवाओं पर भी ग्रहण लग सकता है।
60 वर्ष से अधिक उम्र के रसोइयों के लिए यह स्थिति न केवल आर्थिक संकट को जन्म देती है, बल्कि यह उनके जीवन स्तर को भी प्रभावित करती है। इन रसोइयों का काम नन्हे-मुन्नों के लिए भोजन तैयार करना होता है, और अब उनके घरों के चूल्हे ठंडे होने की कगार पर हैं। इस मुद्दे के समाधान के लिए जल्द ही उचित कदम उठाने की आवश्यकता है ताकि उनकी जीविका सुरक्षित रह सके।